Tuesday, September 29, 2020

सुशांत सिंह राजपूत और खुलते हुए अनसुलझे राझ

 

मेरा मंथन

कौशिकजी (एक खोजी)

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मुख्य मुद्दा

सुशांत सिंह राजपूत के केस में तहकीकात के दौरान कुछ राज सामने आए है। पता लगा है कि रिया चक्रवर्ती और उनके बाद और भी बहुत से बॉलीवुड से संबंधी लोग जैसे दीपिका पादुकोण वगैरा ड्रग्स लेते है। ठीक है भाई, पर अब कुछ लोग boycott Bollywood, boycott KBC के नारे लगा रहे है। और रिया चक्रवर्ती, सुशांत और दीपिका और बाकी सब को ड्रग्स नहीं लेना चाहिए ऐसा बताने वाले क्या यह लोग सही में समाज की सुरक्षा,संस्कृति के बचाव और देश के भविष्य के लिए आंदोलन कर रहे है???

यह लोग कौन है जो विरोध कर रहे है?

यह एक बात बहुत ही साफ है कि को लोग विरोध कर रहे है उन्हें कोई जानता नहीं है।विरोध किया ही इस लिए जाता है, आंदोलन छेड़ा ही इसलिए जाता है की कोई जाने,पहेचाने। जनसमर्थन इक्कठा किया जाए। और फिर बहुत सारे लोगों के समर्थनमे कुछ बड़ा (?) काम किया जा सके क्योंकि अकेले तो कुछ किया नहीं जा सकता।  इतिहास गवाह रहा है कि, इस देश में जिन लोगोने आंदोलन छेड़े है उन्होंने पॉलिटिक्स में भविष्य जरूर बनाया है। अगर पॉलिटिक्समें आए ना हो तो बाहर से पूरी पॉलिटिक्स पर प्रभाव डाल सके (lobbying) से किसी काममें लग जाते है।  किसी भी आंदोलन से आज तक सिर्फ आंदोलन छेड़नेवाले मुख्य लोगो का भला हुआ है। बाकी सब लोग जो आंदोलन से प्रभावित होते है या अगर कुछ फायदा पहुचा हो तो उतना ही जितना कुत्ते को वफादारी के अनुसार हड्डी मिलती रही हे किसी भी आंदोलनमें जुड़ने से पहले हजार दफा सोच लेना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह आंदोलन  की आखिर जरूरत क्या है? और जरूरत जो है उसे क्या यह आंदोलन वास्तवमे पूर्ण कर सके ऐसे ठोस सलीके से देखा जा सकता है क्या? नहीं तो उसे रहने दीजिए। आंदोलनों में जुड़ना बंध करे। जो लोग विरोध कर रहे है उनके जीवन का मुख्य काम ही हर किसी बात का विरोध करना ही है। यह लोग हर तरह के विरोध कि भीड़ में आको देखने को मिल जाएंगे। कुछ समय के बाद जब यह सुशांत और ड्रग्स वाला केस खत्म हो जाएगा यह दूसरा केस पकड़ लेंगे। यह लोग अटेंडेंस के भूखे लोग है। इन्हे इग्नोर करे।

ड्रग्स लेना या ना लेना, यह अगर कानून के दायरे की ही बात है तो फिर इतना ड्रग्स देश में बेचा कैसे जा रहा है?

जी, बिल्कुल सही सोचा आपने। आपका जवाब सच ही है। एकदम इसी कारण से देश में ड्रग्स मिल रहा है। अगर स्वतंत्रतासे सोचा जाए, (जो शायद लोगो को अच्छा ना लगे, क्योंकि कैसे सोचना चाहिए और कैसे नहीं सोचना चाहिए यह भी इस देश में पहले से ही निश्चित किया हुआ है), तो अगर स्वतंत्रता से सोचा जाए, तो संविधान के दिए हुए अंगत स्वतंत्रता के अधिकार की तहत सरकार को इन जहर को  पीने के लीए योग्य व्यवस्था खोज लेने की जरूरत है। क्योंकि बहुत से ऐसे लोग होंगे जो बाहर व्यसन मुक्ति की बाते करते  हो और वहीं लोग अकेले में व्यसन करते होंगे। उसमे उनकी चॉइस है। पर यह पाखंड - दरअसल पाखंड बनता ही इसलिए है क्योंकि व्यसन नहीं करना चाहिए ऐसा नियम है। यही नैतिकता हे ऐसा सब मानते हे।

कुछ प्रॉपर तैयारियों के साथ मातापिता की परमिशन के बाद और अपने जीवनकी-भविष्यकी सारी जिम्मेदारी उस व्यक्ति की रहेगी वैसा कुछ अग्रीमेंट साइन करके उन्हें सस्तेमें उनके व्यसन की चीज दी जा सकती हैं। इस पूरी बात में सब से ज्यादा विरोध उस व्यसनी आदमी के घरवालों को होगा और वो कहेंगे की यह क्या कर रहे हो? पागल हो गए हो? ऐसा थोड़ी करना चाहिए? तो हर उन परिवारों को शांति से सोचने की जरूरत है कि अगर तुम रोक सकते हो तो फिर तुम ने अभी तक में रोक ही लिया होता। अगर यह गेरकानुनी हे तो तो आपके घर का सदस्य व्यसनी तो बनेगा ही और गुनहगार भी। तो क्यों ना सिर्फ व्यसनी ही रखा जाए। इससे सरकार के पास ऐसे व्यसनी लोगो के ऐसे खतरनाक केस जानने मे आएंगे जिससे सामान्य आदमी तो ठीक है, बल्कि व्यसनी लोग भी हकके-बक्के रह जाएंगे। व्यसनी लोगो को व्यसन से पीड़ित और रोगी लोगो की सुश्रुषा करने हेतु केन्सर हॉस्पिटल तथा रीहेबिलिटेशन सेंटरमे सेवा में रखा जाएगा यह एग्रीमंट का हिस्सा होना चाहिए। नजदीक से अपनी आंखो से जब ऐसे लोगो को यह व्यसनी आदमी देखेगा तो अपने आप ही उकी सोच में परिवर्तन आना शरू हो जाएगा। न ही आपको कुछ समजाने या कहने की जरूरत रहेगी। सिगरेट के पैकेट पर कैंसरवाले फोटो छपवाकर और मूवीज की शरुआत में मुकेश को दिखा के वैसे भी कोई खास परिवर्तन हुआ हो ऐसा देखा नहीं जा सका।

 

कुछ उपाय किए जा सकते है जैसे कि...

. नशे को स्वतंत्रता के हक को ध्यान में रख कर संवैधानिक घोषित कर दिया जाए।

ऐसा करने से नियम के रूप में नियम को तोड़ने से मिलने वाला आनंद ही खत्म हो जाएगा। जिससे धा काम हो जाएगा।

दूसरा सरकार के पास डाटा अवेलेबल होने से कितना व्यसन होता है उनका सही आंकड़ा पता चलेगा। (बच्चो के बायोडाटा में भी यह चीज, नौकरी पे स्टाफ के बायोडाटामें भी यह चीज जरूर हो जाएगी। सच बाहर जाएगा)

२. नशे के आदि सारे लोगोंको नशा दिया जाए और कुछ मूलभूत हक छीन लिए जाए।

इससे नशेड़ी लोग दो भागोमें विभाजित हो जाएंगे।

Ø  जिन किसी मे जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने की समझ जरा सी भी बची है, तो वह अपने आप नशे से दूर चले जाएंगे।

Ø  जिन लोगो मे अपने ही भले या बुरे की समझ बची ही नहीं है ऐसे लोग तो वैसे भी समाज से दूर रहे यह अच्छा है, उनके कुछ हक और स्वाधिनता छीन लिए जाए। वो व्यसनी होगा भी ऐसा ही जों कहेगा की सब कुछ छीन लो कुछ नहीं चाहिए, बस मुझे मेरा नशा दे दो।

 

By Kaushikji (an Explorer)

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