'मै हु' मे से सिर्फ 'हु' मजबूत हो रहा है।
जीवन कुछ मांगता है, और मैं भिक्षुक नहीं हु।
यह कैवल ज्ञान का फैलाव नहीं है। ज्ञान के फैलाव से मै भलीभाँति परिचित हूं। यह कुछ और ही है। यह कोई अलग फैलाव है, यह कुछ अनोखा है, कुछ तो अनूठा हे, ज्ञान से बिलकुल अलग है। शब्दो मे समझना और समझाना मुश्किल सा है। पर एक बात बढ़ी ही मजबुती से कह सकता हूं की, जो कुछ भी मुझ मे उतार रहा हे वह कुछ ऐसा उतर रहा है, जिसे मुझे संभालना नहीं पड़ रहा। जीवन के पिछले सालोमे जो कुछ भी हासिल किया है, चाहे वो दौलत हो, रिश्ते हो या कोई साधन, हर चीज मेंटेनन्स मांगती है, उसे संभालने मे शक्ति खर्च करती रहनी पड़ती है, पर अब जो उतर रहा है, इसे मुझे ना तो संभालना पड़ रहा है, ना ही इसका कोई मेंटेनन्स है।
शायद यह ऐसा कुछ है, जो मुझे सामर्थ्य दे रहा है, बहोत सारी चीजों को मेंटेन करने का। यह कुछ इतना कोंक्रीट है, इतना मजबूत है, जो सिर्फ मुझे दे ही रहा है। बदले मे मुझे इसे कुछ नहीं देना पड़ रहा। और इससे मुझे यह समझ मे आ रहा है की हजारो सालो मे इस ग्रह के हमसे पहले जन्मे महानुभावों ने इन अनुभवों को कहा था, वो एक दम सच और सटीक था।
मै जैसे सिकुड़ता जा रहा हूं, पर उस यूरेनियम के अणु की तरह को शक्तिमे सर्वोच्च है। एक तरफ मै मेरा फैलाव मेहससू कर रहा हूं….(क्रमश:) जुड़े रहे….
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