Thursday, September 21, 2017

PCOD/PCOS : SIGNS & SYMPTOMS POLY-CYSTIC OVARIAN DISEASE (PCOD) - पीसीओडी की समस्या, लक्षण और निदान...

PCOD एक गंभीर समस्या या युवावस्था की नासमझी?



            आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में महिलाएं अपने स्वास्थ्य की अनदेखी कर देती हैं, जिस का खामियाझा उन्हें विवाह के बाद भुगतना पड़ता है। लड़कियों को माहवारी (पीरियड्स) शुरू होने के बाद अपने स्वास्थ्य पर खास तौर से ध्यान देने की आवश्यकता होती है। महिलाओं के चेहरे पर बाल उग आना, बारबार मुहांसे होना, पिगमैंटेशन, अनियमित रूप से माहवारी (पीरियड्स) मे होना तथा ज्यादा या कम खून आना और गर्भधारण में हो रही मुशकेलिया महिलाओं के लिए खतरे की घंटी है।

            चिकित्सकीय भाषा में महिलाओं की इस समस्या को पोलीसिस्टिक ओवरी डिजीज यानी पीसीओडी (PCOD) के नाम से जाना जाता है। इस समस्या के होेने पर महिलाओं को खास कर कुंआरी लड़कियों को समय रहते चिकित्सकीय जांच करानी चाहिए। ऐसा नहीं करने पर महिलाओं की ओवरी (अंडाशय) और प्रजनन क्षमता पर असर तो पड़ता ही है साथ ही, आगे चल कर उच्च रक्तचाप, डायबिटीज और हृदय से जुड़े रोगों के होने का खतरा भी बढ़ता चला जाता है।

     आज करीब ३० प्रतिशत महिलाएं इस बीमारी से ग्रसित हैं जबकि चिकित्सकों का मानना है कि इस बीमारी की शिकार महिलाओं की संख्या इस से कई गुना अधिक है, किन्तु उचित ज्ञान न होने व पूर्ण चिकित्सकीय जांच न होने की वजह से महिलाएं इस समस्या से जिंदगी भर जूझती रहती हे। हर महीने महिलाओं की दाईं और बाईं ओवरी में माहवारी (पीरियड्स) के बाद दूसरे दिन से अंडे बनने शुरू हो जाते हैं। यह अंडे १४-१५ दिनों में पूरी तरह से विकसित होकर १८-१९ मिलीमीटर साइज के हो जाते हैं। इस के बाद अंडे फूट कर खुद फेलोपियन ट्यूब्स में चले जाते हैं और अंडे फूटने के १४वें दिन महिला को माहवारी (पीरियड) शुरू हो जाती है लेकिन कुछ महिलाओं, जिन्हें पीसीओडी की समस्या है, में अंडे तो बनते हैं पर फूट नहीं पाते जिस की वजह से उन्हें पीरियड नहीं आता।

     ऐसी महिलाओं को से महीनों तक पीरियड नहीं आने की शिकायत रहती है, जिस की सब से बड़ी वजह है कि फूटे अंडे अंडाशय (ओवरी) में ही रहते हैं और एक के बाद एक उन से गठान (सिस्ट) बनती चली जाती हैं। लगातार गठान (सिस्ट) बनते रहने से ओवरी भारी लगनी शुरू हो जाती है। इसी अंडाशय (ओवरी) के रूप को को पोलीसिस्टिक ओवरी (मृत अंडो से भरी गठनों वाला अंडाशय) कहते हैं।
     इतना ही नहीं, यह बात यहा रुकती नहीं। समस्या और भी विकत स्वरूप लेती जाती हे।  इस के कारण अंडाशय (ओवरी) के बाहर की कवरिंग कुछ समय बाद सख्त होनी शुरू हो जाती है। गठान(सिस्ट) के अंडाशय(ओवरी) के अंदर होने के कारण अंडाशय (ओवरी) का कद धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हो जाता है। ये गठान(सिस्ट) झहरीली(ट्यूमर) तो नहीं होतीं पर इन से अंडाशय(ओवरी) सिस्टिक हो चुकी होती है, जिस की वजह से अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी कराने पर कभी ये गठन (सिस्ट) दिखाई देती हैं तो कभी नहीं। दरअसल अंडों के अंडाशय(ओवरी) में लगातार फूटने के चलते अंडाशय(ओवरी) में जाल बनना शुरू हो जाता है। धीरे-धीरे अंडाशय(ओवरी) के अंदर जालों का गुच्छा बन जाता है। इसलिए गठान(सिस्ट) का पूरी तरह से पता नहीं चल पाता है।

     पीसीओडी होने के मुख्य कारणों का पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है लेकिन चिकित्सकों की राय में लाइफस्टाइल में बदलाव, आनुवंशिकी व जैनेटिक फैक्टर का होना मुख्य वजहें हैं। परन्तु आयुर्वेद में इसका बड़ा सटीक और विश्वसनीय इलाज है।

क्या हैं सिस्ट के लक्षण

     अंडाशय(ओवरी)में अंडों के न फूटने की वजह से जो गठान(सिस्ट) बनती हैं उन में एक तरल पदार्थ भरा होता है। यह तरल पदार्थ पुरुषों में पाया जाने वाला हार्मोन एंड्रोजन होता है, क्योंकि लगातार सिस्ट बनती रहती हैं तो महिलाओं में इस हार्मोन की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है, जिस की वजह से युवतियों के शरीर पर पुरुषों की तरह बाल उगने लगते हैं। इसे हरस्यूटिज्म कहते हैं। इस वजह से महिलाओं के चेहरे, पेट और जांघों पर बाल उगने लगते हैं।

     एंड्रोजन की अत्याधिकता के कारण शरीर की शुगर इस्तेमाल करने की क्षमता भी दिन-प्रतिदिन कम होती जाती है, जिस की वजह से खून मे शुगर का स्तर भी बढ़ता चला जाता है, जिस के चलते खून में वसा(फेट) की मात्रा बढ़नी शुरू हो जाती है और यही वसा महिलाओं में मोटापे का कारण बनती है।

     मोटापा अधिक होने के कारण महिलाओं में इस्ट्रोजन नामक हार्मोन ज्यादा बनने की संभावना बढ़ जाती है। इस स्थिति में लिपिड(कोलेस्टरोल) लेवल भी बढ़ा हुआ होता है जिस की वजह से ब्लड वैसल्स(नसो) में फैट सैल्स बढ़ जाते हैं और ब्लड की नलियों में चिपक कर उन्हें संकीर्ण बना देते हैं। पतला कर देते हे। समय जाते यह फेट सैल्स ब्लड सप्लाई करने वाली नलियों को ब्लौक भी कर सकते हैं।

     महिलाओं में अगर इस्ट्रोजन अधिक मात्रा में बनता है तो ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन भी ज्यादा बनाने लगता हे, जिस की वजह से माहवारी में अनियमितता पाई जाती है। साथ ही, काफी दिनों तक इस्ट्रोजन ही बनता जाता है और उसे संतुलित (बैलेंस) करने वाला हॉरमोन प्रोजेस्टेरोन बन नहीं पाता। यदि गर्भाशय में इस्ट्रोजन बहुत दिनों तक काम करता है, तो महिलाओं को यूटेरियन(गर्भाशयका) कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।

     अगर किसी महिला में पीसीओडी के लक्षण हैं तो उसे इस बीमारी की जांच के लिए पैल्विक अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी कराना चाहिए। इस के अलावा हार्मोनल और लिपिड टैस्ट होते हैं। हार्मोन के सीरम स्तर पर ग्लूकोज टौलरैंस आदि की जांच की जाती हे। इस से बौडी में ग्लूकोज की सही मात्रा की जानकारी मिल जाती है।
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से 18 साल की लड़की की माहवारी(पीरियड) अनियमित होने पर उस का सिर्फ इतना ही इलाज किया जाता है कि माहवारी(पीरियड्स) सामान्य हो जाएं। जबकि यह तो हॉरमोन को संतुलित कर के करना चाहिए। जिस तरह से हर महीने कौंट्रासैप्टिव दिए जाते हैं उसी तरह से उसे कौंबिनैशन हार्मोन(एक ही दवाई या भिन्न दवाइयो से बना हॉरमोन का संयोजन) की दवाएं दी जाती हैं। आज के समय मे सामान्य रूप से एक लड़की को 11 साल की उम्र में पीरियड्स होने लगते हैं जो वय कुछ दशक पहले 14 साल की थी। पीरियड(माहवारी) शुरू होने के 4-5 साल बाद यदि वह अनियमित होने लगे या पहले से ही अनियमित हो तो चिकित्सकीय सलाह और जांच करा लेनी चाहिए।

     पीसीओडी से पीडि़त युवती की शादी हो जाने पर उसे पीरियड की अनियमितता और गर्भधारण जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जिससे वह काफी मानसिक व्यथा एवं चिंताओका भोग बनती हे। इस स्थिति में उस की माहवारी को नियमित करने और अंडा समय पर पक सके, इस का इलाज किया जाता है।

     इस के अलावा इन महिलाओं की गर्भधारण के 9 माह दौरान अन्य गर्भवती महिलाओं की सापेक्ष में ज्यादा देखभाल करनी पड़ती है, क्योंकि इन में गर्भपात की आशंका बहुत ज्यादा बनी रहती है। इसलिए गर्भधारण करने के 3 महीने तक यदि गर्भ ठहरा रहता है तो फिर वे एक सामान्य महिला की तरह रह सकती हैं। इस के बाद डिलीवरी में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं आती है.

     पीसीओडी से ग्रसित महिलाओं में बार-बार गर्भपात के आसार ज्यादा होते हैं।  इसलिए यदि कोई बड़ी उम्र की महिला गर्भवती होती है तो हो सकता है वह प्री-डायबिटिक हो। ऐसी स्थिति में महिलाओं को चाहिए कि समय समय पर खून मे रही शुगर की जांच कराती रहें और यदि किसी महिला का वजन अधिक है तो उसे व्यायाम और अन्य शारीरिक कसरत से अपना वजन घटाना चाहिए ताकि गर्भधारण के दौरान महिला और उस के गर्भ में पल रहे शिशु को किसी भी प्रकार की शारीरिक समस्याओं का भाजन न होना पड़े।

     इन महिलाओं को दिन में एक बार में ज्यादा खाना खाने से बचना चाहिए।  ज्यादा खाना खाने के बजाय उन्हें बार-बार थोड़ीथोड़ी मात्रा में खाना खाना चाहिए।  वे कम कार्बोहाइड्रेट और वसायुक्त भोजन लें, मीठी चीजों से परहेज करें तथा रिफाइंड फूड जैसे की शक्कर, मैदा, कोलड्रिंक आदि से बचे जिससे की शरीर में इंसुलिन का स्तर संतुलित बना रहे। ऐसी तमाम बातों का ध्यान रख कर पीसीओडी से ग्रस्त महिला गर्भवती हो कर मां बनने का सुख प्राप्त कर सकती है

     अनुभवी एवं तजज्ञ आयुर्वेदिक चिकित्सक आप को इस समस्या से मुक्त होने मे अवश्य सहायरूप होगे। अगर आप इस समस्या से ग्रसित हे तो हमे भी संपर्क कर सकते हे।

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