स्वानुभवम - श्री धंधुकीयाजी की कलमसे

आज मे आप सबसे अपने काफी महत्वपूर्ण परिणाम पानेवाले मरीझोमेसे एक अनन्य ऐसे अनुभव की चर्चा करने जा रहा हु। आशा है की आप सभी इस अनुभव को अपने झहन मे उतारकर लाभान्वित होगे।
  मै रोज की तरह अपने दफ्तर मे बेठा था। एक के बाद एक मरीझ अपना अपना इलाज लेके तथा अच्छे से समज के जा रहे थे। मै दफ्तर से कभी कभार बाहर प्रतीक्षालय मे लगे हुए केमेरे के दृश्यो को देख लिया करता था। जिससे कितने मरीझ बाहर प्रतीक्षारत है उससे वाकिफ हुआ जा सके। और बाहर के दिख रहे उस दृश्यमे मुझे वहा पे एक दंपति बेठे हुए दिखे, उनके चेहरे से चिंता साफ साफ झलक रही थी एवं कुछ आशा भी लगाए हुए थे की शायद कुछ अच्छा हो जाए। उस दंपति के अंदर आने से पहेले ही हमारे एक कार्यकर्ता महेशभाई अंदर आए और बताया, सर, बाहर मेरी बहन और जीजाजी आए हुए है। उनकी शादी को 13 साल बीत गए है और अभी काफी प्रयासो के बावजूद संतान नहीं हो रही हे। शादी के पहेले ही साल उन्हे एक बच्ची हुई लेकिन बादमे 13 साल गुजर गए है।” वैसे तो हर रोज कई काम्प्लिकेटेड (दुविधापूर्ण एवं जटिल) केसीझ आते है जिन्हे सब जगह से मना कर दिया गया हो या किसी भी तरह की कोई शस्त्रक्रिया की सलाह कर दी गई होती हे। महेश भाई बहन और जीजाजी को ले के अंदर आए। बहन का चेहरा दिखते ही उस चेहरे के पीछे चिंता से भरी उस माँ का अहसास हो रहा था जिसे माँ न बनने की कई सारी कीमत इस समाजव्यवस्था मे काफी व्यवधानो के रूप मे चुकानी पड़ी होगी। कई जगह पर ईलाज करवा लेने के और काफी खर्च उठाने के बाद उनके मन मे विश्वास कम और शंका ज्यादा थी। बहन ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया की “13 साल से हर बार हम प्रतीक्षारत रहे हे सब दाक्टर साहब बोलते है की हो जाएगा पर 13 साल बीत चुके है आज तक कोई परिणाम नहीं मिल पाया हे।”

    अब हमने अपना निदान कार्य शुरू किया। हमने उनसे उनके परिवार के इतिहास के बारे मे और स्वास्थ्य से जुड़े कुछ सामान्य प्रश्नोत्तर किए। 13 साल से ली जा रही ऐलोपथिक दवाइया और कुछ मानसिक तनाव के चलते उनके शरीर मे त्रिदोष काफी असंतुलित थे एवं पित्त वृद्धिगत हुआ था और थायरोइडकी समस्या भी भेट मे मिली थी। शारीरिक स्थिति काफी अवनित हुई देख हमने उनकी मानसिक स्थिति को भाँपने के लिए उनके औरा की जांच करना तय कर उसकी स्थिति जाँची। इससे हमने उनकी परिस्थिति से अच्छे से वाकिफ होकर उन्हे बताया की अब हम आपकी पूरी स्थिति समज चुके है। आपके शरीर को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ अत्यंत ही आवश्यक एवं बुनियादी चीजों की आवश्यकता होगी। उन्हे हमने वास्तविकता समजाई और बुजाया की जितनी नकारात्मकता आपके मानस मे बाहर से एवं आज तक की निष्फलताओसे आई है सब निकाल दे, क्योकि बच्चे का जन्म होना यह तो एक सनातन क्रिया है। सनातन यानि क्या? सनातन यानि हमेशा से घटित होने वाला। सेंकड़ों सालो पहेले भी संतान का जन्म होता था आज भी होता है और जब तक मानवजाति का अस्तित्व रहेगा तब तक संतान का जन्म होता ही रहेगा। संतान के जन्म की यह क्रिया सिर्फ सनातन ही नहीं बल्कि वैश्विक भी है। वैश्विक यानि की दुनिया के हर देश मे संतान का जन्म होता है फिर चाहे वह अमरीका हो या औस्ट्रेलिया या हमारा भारत। और तो और संतान-जन्म की यह क्रिया सनातन एवं वैश्विक होने के साथ साथ सीधी तथा सरल भी है। कितनी सरल??? इतनी सरल की अबुध एवं अनपढ़ पशु-पक्षियो को भी बच्चे पेदा हो जाते है। और भी कुछ उनके शरीर के बारे मे बाते हुई और समस्या का कारण पता लगा लिया गया और उस समस्या को जड़मूल से नाश करने की सफर शुरू हुई। हमने उनसे 6 माह का समय मांगा और बताया की शायद खर्च हो सकता है।
     आप बस सुचित की गई सारी बातों का ख्याल रखे। और 70 से 80% ऐसी दवाईया उपलब्ध कारवाई जो की उनके घर पे ही मुफ्त मे ही तैयार होगी। स्वास्थ्यप्रेमी परिवार सिर्फ नुस्खे नहीं देता बल्कि दुनिया की अधिकतम महंगी लेकिन परिणामदायक दवाईया जो की एक सामान्य आय रखनेवाला या एक गरीब आदमी की सामर्थी से बाहर होती हे, वही दवाई घर पर बहोत ही कम खर्च मे या फिर मुफ्त मे बनाने की विधि समजाता है जिसे कोई भी सामान्य आदमी बिना किसी वैधकीय ज्ञान के बना सकता है जिसमे किसी भी औषधियो का इस्तेमाल नहीं होता।बहोत कम लोग यह जानते है की एक बच्चे के निर्माण मे ग्यारह छीजो की जरूरत होती है । बछे न होना यह कोई प्रोब्लेम नहीं है बस छोटी से भूल है और ईश्वर की रचना यह है की भूल को सुधारा जा सकता है । बचे की रचना मे इंसान को क्या समज मे आता है ? मटा को क्या समाज मे आता है कुछभी तो नहीं वह प्रक्रिया तो स्वयंसंचालित ही बनता है बस अनुकूल वातावरण ही तो देना होता है । कोई दवाई नहीं दी जाती थी तब भी तो बच्चे पैदा होते थे ।घर पे ही प्रसूति प्रक्रिया होती थी तब भी बच्चे पैदा होते थे । पर आज का नया इंसान पढ़ा-लिखा होता जा रहा है और सरल बुद्धिमता एवं अपनी सूजबूज को दफनाता जा रहा है। न माँ की मानेगा न पिता की न ही दादा-दादी की। अरे मेरे भाई जरा पूछ तो सही तेरे कितने भाइयो-बहनो का जन्म उनके नजारो के सामने हुआ था तेरा ख्याल भी तो उनहो ने ही रखा था। तेरी जीस बुद्धि की जिस पे तुजे गर्व है शरीर के सामर्थ्यपर पे बहोत गर्व है यह न होता अगर उनलोगों को प्रेगनेंकी मे तेरी मात को संभालना न आता होता । पूरी दुनिया मे सब से ज्यादा सही सटीक बात बिंकिसी लोभ लालच के अगर कोई कर सकता है तो वो तेरी माँ ही है। पर नयो पीढ़ी दिमाग से बढ़ी (मई तो यह भी नहीं मानता की दिमाग से ब्स्धि हो रही है )पर दिल से छोटी होती जा रही है।  मैंने उस बहन को उनका अपना छोटा भाई जताते हुए उनको प्रोत्साहित किया और कहा की अब यह सिर्फ आपका सफर नही अब आपके इस सफर मे गंतव्य तक में भी आपके साथ हु अब यह सफर हमारा सफर है।

    बहन और जीजाजीने खुशी के साथ और आशा की एक किरण के साथ बिदा ली। और हम फिर से बाकी के अपने दुख-दर्द तथा परेशानियो मे डूबे हुए एवं जुज़ रहे बाकी मरीझो की समस्या सुलझाने मे लग गए। मै मन ही मन काफी हर्षित तथा अत्याधिक उत्साहित था क्योकि मुझे पूरा विश्वास था की मै बहन की समस्या की जड़ को समज चुका था। और मुझे पता था की में इन्हे ठीक कर सकता हु। फिर यह भी एक विचार आया की अगर बाकी कितने बड़े बड़े डॉक्टर्सने उपचार कर ही लीया है तो उन्हे भी तो यह जड़ का, इस मुख्य समस्या का पता तो चल ही गया होगा, तो फिर उनसे अगर ठीक नहीं हुआ तो मुजसे कैसे होगा। क्या मुजसे भी परिणाम न आए ऐसा तो नहीं होगा न? पर करीबन पिछले 12 सालो से में इस दृश्य जगत से परे की शक्तियोंको (पेरानोर्मल) और कुदरत की कला को एक कलाकार की भाँति और एक वैज्ञानिक की भाँति समजने का प्रयास करता आ रहा हु।
कुदरत को समजने के लिए आप वैज्ञानिक अभीगम के साथ कलाकार भी होने ही चाहिए इसके बिना कुदरत को समज पाना बिलकुल असंभव है यह मेरे दादाजी की सिखाई हुई बात थी जिसने हमेशा मुझे कुदरत के करीब रखा है। तो में समज गया की अभी तक उन डॉक्टर्स ने सिर्फ शरीर की दवाई ही दी थी पर मरीझ या इंसान सिर्फ शरीर नहीं है।
  "वह तो मन (Mind), मस्तिष्क (Brain), जीव (Soul) और शरीर (Physical Body) का योग है। और हमने इस बहन के इन चारो स्तंभ को संतुलित एवं सशक्त करने की ठान ली थी।"
    में फिर से एक बार एक नए साहस तथा नूतन यात्रा के लिए सजग एवं तैयार था। हमेशा की तरह इस बार भी एक चुनौती थी मेरे लिए। पर कुदरत के काम करने की इस सुचारु पद्धति को समजने की एक ओर तक थी मेरे पास। और हमेशा की तरह इस बार भी मेने  कुदरत के नियमो को जो में समजा था उन्हे प्रयोग करने की ठानी थी।

    15 दिन की सारवार के बाद एक नियमित चेकअप हुआ। और करीब 26वे दिन बाद उनका फोन आया। मे अन्य एक मरीझ के साथ मुफलिझ था। उसी दौरान मैंने फोन उठाया और सामने से रुई रुई सी लेकिन हर्षसे भरी एक आवाज आई की साहब, बच्चा ठहर गया हे।”, बस मुझे तो इतना ही सुनना था की मे उस कुदरत को एवं ईश्वरीय शक्तियों को मन ही मन प्रणाम कर रहा। थोड़े समय के बाद सोचा की अगर 26 दिनमे ही यह होना था तो आज तक अन्य चिकित्सकोने क्या किया था? क्या उसमे उनका कोई दोष हे? क्या कोई स्वार्थ छिपा हुआ था? या फिर हमारी शिक्षण प्रणाली ही आज के डॉक्टर्स को असमंजस मे डाल देती हे? और फिर हम उनसे परिणाम की आशा ही कैसे रखे?

     इस बात को करीबन डेढ़ साल गुजर गया है। उनके घर पे जब जाना हुआ तो बहोत आनंद हुआ। नॉर्मल डिलीवरी से एक तंदूरस्त
, मेघावी और ओजस्वी बालक उनकी गोद मे खेल रहा था। बच्चे की माँ की आंखो मे से हमे देख के आँसू रुके नहीं रुक रहे थे। परिवार के बाकी सदस्य भी इतने ही भावुक एवं उत्साहित थे की बात ही न पुछे। बच्चे की दादिमा भी बहोत खुश थी और कह रही थी की “मेरे छोटे बेटे की बेटी मुझे चिड़ा रही थी की क्यू दादी तुम तो महीने भर मे भी कभी एक बार भी ऊपर दूसरी-तिसरी मंझील तक खाना खाने के लिए भी चड नही पाती थी। पर अब तो भाई के आने से तो दादी आप एक दिन मे तीन बार ऊपर तक सिर्फ बच्चे को खिलाने के लिए और देखने के लिए आ जाती हो”,  और क्यो न आए 13 साल बाद अपने परिवार के वारिस को देखा जो था। जब हमने बच्चे के जन्म से जुड़े कुछ तथ्य जाने तो पता चला की नौ माह के दौरान कभी भी माँ को किसी भी तरह की कोई जटिलता अनुभव नहीं हुई थी। एवं सबसे ज्यादा अचंभित कर देने वाली बात तो यह थी की जन्म के समय इस शिशु का वजन 4 किलो 200 ग्राम का था तथा सम्पूर्ण तंदूरस्त था, अस्पताल के डॉक्टर तथा परिचारिकाए भी बच्चे को उसकी माँ से छिनकर पूरा दिन यह बोलकर ले जाती थी की “आप सब तो घर जाने के बाद इसके साथ खेलने ही वाले हो यहा हो तब तक हम ही इसके साथ खेलेंगे”। जिस बच्चे के जन्म से ही इतनी खुशिया खिल उठी थी तो स्वाभाविक रूप से घर का माहौल तो हर्षोल्लास से अभिभूत था। जब शिशु के जन्म की खबर घर पर आई तब बच्चे की चाची यानि की बहन की देवरानीने हर्ष मे आकर सुबह सुबह 3:30 बझे थाली एवं बेलन की चोट से शोर मचाकर पूरे महोल्ले के साथ अपनी खुशिया बाटी। बच्चे की बुआ 10 मिनट मे अस्पताल पे आ गई। ऐसी तो कई सारी खुशिया उन्होने बताई की जन्म होते ही अस्पतालमे आए परिवार के सभी लोग चौधार आसू बहाये जा रहे थे लेकिन यह तो हर्ष एवं ईश्वर कृपा के प्रति उनका आभार प्रकट हो रहा था। उनके परिवार मे यह पहेला लड़का था पिछले 35 साल मे। उनहो ने अब खुल के अपने अनुभव बताए की कुछ रिश्तेदार आते थे और कहेते की इतने सालो मे इतने बड़े डॉक्टर और इतना खर्च करने के बाद जो नहीं हो पाया वो भला ऐसी तकनीक या प्रयोग से कैसे होगा। पर हम आपकी बात समज गए थे हमारे झहन मे केवल आपकी ही बाटो का प्रभाव था तो विश्वास था तो वो सब किया था जो आपने बताया था।



 मे पाठक वर्ग से बताना चाहूँगा की दोस्तो स्वासस्थ्यप्रेमी परिवार ने यह मुहिम, पूरे भारत देश मे और विदेश मे भी चलायी है की जिससे लोग बिना दवाई के स्वस्थ रहे। आजकल व्हाट्सअप और फ़ेसबूक के माध्यम से रोज सेकड़ों अलग अलग टिप्स एवं नुस्खे हम सब तक आते जाते रहते है। पर क्या आप यह जानते है की लोग क्यो उन टिप्स का पालन करने के बजाय दवाई लेना पसंद करते है क्योकि हर एक नुस्खा हर किसी व्यक्ति के लिए काम नहीं करता। कुछ को परिणाम मिलता है और कुछ को नहीं। जिनको नहीं आता वह परेशान हो कर आयुर्वेद से दूर चले जाते है। स्वास्थ्यप्रेमी परिवार एक काम यह भी करता है की हर रोग के लिए सेकड़ों टिप्स नहीं देता, कुछ एक दो ही टिप्स दी जाती है जिनसे पक्का उस रोग मे काबू एवं निराकरण आए ही आए।
“अगर घरेलू नुस्खो से आसानि से परिणाम मिलते तो दादिमा का खजाना’, घरेलू नुस्खे और ऐसी कई सारी पुस्तिकाए दस-बीस रुपयेमे बाजार मे क्यो बिकती। वो पुस्तिका एक अहम काम करती है - लोगो को आयुर्वेद से कोसो दूर ले जाने का काम। तो कृपया जहा कही से जो भी टिप्स मिले वो करने मत लग जाइए उस टिप्स का कार्यकारण (मिकेनिझम) पता कीजिये और सही मालूम होने पे नुश्खा आजमाइए।
बस हम दादीमा से बात ही कर रहे थे की उस बच्चे की बड़ी बहन भी आ और हमे घर आया देख के खुशी खुशी मे पैर छूकर बस रो ही पड़ी। बच्चे की माँ बोली “सर पूरी जिंदगी जब भी बच्चे का जन्मदिन मनाएंगे आपकी याद हमेशा आनी है। वादा करे की हर बार आप जन्मदिन मे हाजीर रहेंगे। आपके ही आशीर्वाद से ही तो हम इस बच्चे का दीदार कर पाये है। सब की आंखो मे खुशी के आसू रिस रहे थे। सब ने अपनी आंखे पोछी। बस आज का दिन बहोत खास था। उनकी खुशिया देख के आज लग रहा था की भले पैसे न कमा सके या दुनियाभर की दौलत या ऐशों-आराम न मिले पर इस सेवाकार्य को हमेशा चालू रखना है इससे आत्मा की भूख मीट रही है। ईश्वर ने शायद इसी काम के लिए भेजा है हमे। वरना क्यू इतना आनंद होता किसी और को खुशी देते समय। ईश्वर की मरजी समजकर लाखो कठिनाइयो से जूजने के बाद भी परिवार ने अपना काम व उद्देश्य नहीं छोडा।

(और हमारा छोटा सा नन्द गोपाल अपनी माँ की गोद मे सोये हुए मंद मंद मुस्कुराहट के साथ हमारी यह सारी चर्चा सुन रहा था।)





पूछा गया हे की " 'उपवास' क्या हे एवं क्या उपयोग एवं क्या उपर्युक्ता हे इसकी? क्या विज्ञान हे इसके पीछे?"




उपवास का अर्थ बीना उपनिषदों को समजे नहीं जाना जा सकता। हा, अनशन कर सकते हो। और ज़्यादातर लोग अनशन ही कर रहे है। कुछ समय के लिए भूखा रहना, कुछ न खाना या कम खाना या गिनी चुनी चिजे ही खाना इसे सिर्फ अनशन ही तो कहा जा सकता है। इसे उपवास कहना नितांत अनुचित होगा।

उपवास के बारे मे दुनिया के हर धर्म ने कुछ न कुछ कहा है, लिखा भी है एवं समजाया बुजाया है। तो यह साबित करने की कोई जरूरत नहीं है की उपवास अपने मे जरूर किसी खास रहस्य को छुपाए बेठा है। इस रहस्य को मे उस समय समज पाया जब स्वास्थ्य प्रेमी परिवार की रचना हो रही थी। उस समय कोई खास जरूरत मुझे मजबूर किए हुए नहीं थी। सुखी परिवार, पैसे की कोई समस्या भी न थी। जो मेरी जरूरते थी एवं परिवार की जरूरते थी अच्छे से पूरी हो रही थी। पर फिर भी मे अच्छा अनुभव नहीं कर पा रहा था। रात की नींद हराम हो गई थी। सब कुछ बंधन सा, गुलामी जैसा प्रतीत हो रहा था। फिर एक दिन रात ११ बजे में अपनी डायरी (दैनंदिनी) लिखने बेठा और उस रात मैंने प्रथम बार उपवास किया। यह कहना ज्यादा उचित रहेगा की उपवास घटित हुआ और में जागता चला गया उपवास घटित होता चला गया। सुबह ५ बजे तक लेखन करने के बाद में सोया। और सुबह ८ बजे वापिस नींद खुलने पर फिर डायरी (दैनंदिनी) ले के बेठ गया क्योकि रात का वो उपवास इतना आनंद दायक था की फिर कुछ और काम मे इतना आनंद आना संभव ही प्रतीत नहीं हो सकता था।

उपवास विषय पर बात शुरू करने से पहेले कुछ अहम जानकारिया है जिसे समज ली जाए तो बात को समजा जा सकेगा। अगर किसी चीज को समजना चाहो तो कहा जाता है की अगर नाम को समजो तो आधी बात तो समज मे आ गई।

तो उपवास शब्द का अर्थ हमारे लिए आधी बात जितना महत्व रखता है। उपवास जैसा ही एक शब्द भारत देश ने हजारो साल पहेले दिया जिसे हम उपनिषद कहते है। उपनिषद (उप + निषद) का अर्थ है, थोड़ा ऊपर जा के, थोडा अंदर जा के, थोड़ा नजदीक जाके, थोड़ा खुद के साथ, थोड़ा स्वयं के अस्तित्व (existence) के साथ बेठना। और आश्चर्य की बात है की भाषा मे न सही पर भाव मे उपवास और उपनिषद दोनों शब्द का अर्थ एकसा समान ही होता है। यह बात और है की लोगो ने मुजसे अब से पहेले उपनिषद के जीतने भी अर्थ किए वो भाषाकीय अर्थ रहा है। तो स्वाभाविक सी बात है की यह मेरी समज की बात है मेरी अपनी बात है तो यह बात उनको नहीं आयी होगी क्योकि उनकी समज सबसे अलग ही रही होगी।

उपवास का अर्थ होता है थोड़ा ऊपर जाके बसना। कहा ऊपर? ऊपर मतलब ऊंचे या पर्वतीय विस्तार मे? नहीं। ऊपर, मतलब की आपके शरीर से, आपसे जुड़ी स्थूल चीजो से, आपसे जुड़ी भौतिक चीजो से ऊपर, और आपके स्थूल शरीर से, आपकी स्थूल इंद्रियो से ऊपर। मतलब स्वयं के अस्तित्व के साथ केवल। और यह सीधी सामान्य सी बात नही। कल करना चाहो और हो जाए इतनी सरल बात भी नहीं है। तो प्रथम बात तो यह है की कल से आप उपवास नहीं कर सकोगे, हा अनशन कर सकते हो उपवास तो कठिन मालूम हो जाएगा तुम्हें करने के लिए। और सरल नहीं है यही इसका राझ है। क्योकि कभी सरल चीजो मे रहस्य नहीं छिपाया जा सकता। सरल चीज से क्या पा सकोगे। जो अटपटी लगे उसमे जरूर कुछ छिपाया हुआ मिलेगा। और धर्म एवं सम्प्रदायो का रास्ता भी ऐसा अटपटा रहा है। क्योकि जो तुरंत मिल जाए, सादगी से मिल जाए, आसानी से मिल जाए, बस चाहो और मिल जाए सरलतासे उसकी कदर कहा तुम करते हो। कदर होना तो दूर तुम्हें उसमे कोई रस ही मालूम नहीं होता। क्योकि चीज जितनी मुश्किल से मिले उतनी ज्यादा मूल्यवान और ज्यादा प्यारी लगने लगती है। और यह भी बड़ी सनातन भाषित बात है की मोती तो समंदर की गहराई से ही मिलते है। और अच्छा ही है की गहराई से मिलते है वरना तुम्हें उन मोतियो मे कोई दिलचस्पी न देखने को मिलती।


उपवास भी वैसी ही बात है इसीलिए तो तुम्हें मोती मिल जाते है। और तुम भी तो बड़े चालाक हो? तुमने प्रश्न पुछने का कष्ट ही इसलिए किया है क्योकि तुमने सुना है इससे तो काफी मोती मिला करते है। मन की शांति भी इससे मिलती है तंदूरसती एवं स्वास्थ्य भी और सालो से घर कर बैठे रोगो का भी उपचार है। बाकी तुम्हारे पास कहा यह सब सोचने का सुझाने का समय था।
  • हिन्दू वेदो की बात करे तो ईश्वर प्राप्ति के 4 मार्ग है।

उपवास के इस पहलू को उजागर करेगे अगले भाग मे ...

इन सब नियमो का एक ही महत्व है जिससे की आप अपने साथ - अपने अस्तित्व के साथ रह सके। जो तुम्हारे मृत्यु के बाद भी साथ बना रहे वो इकठ्ठा करो। यह बात और है की जो पाया जा सकता है वो तुमने पहेले ही से पाया ही है केवल एक विस्मृति सी रह गई हे। बस कोई चोट कर दे और तुम जागे हुए ही हो।
श्री पांडुरंगजी ने हमारे उत्सवो को एवं उपवास के प्रयोगो का हमारे जीवन के साथ काफी सटीक तरीके से बौद्धिक विनियोग करके हमारे उत्सवो को एक नवीन अर्थ देने मे सफल हुए हे।

  • कुछ चौकानेवाली घटनाए उनसे जुड़े तथ्य एवं वैज्ञानिक प्रयोग जो उपवास पे हुए –


तो यह बात तो अब स्पष्ट हो ही गई होगी की उपवास कोई सामान्य अनशन नहीं। उपवास वो घटना है जब तुम्हारे मन, मस्तिष्क, जीव तथा शरीर सब का संयोग संभव है। इससे भी वो घटित हो सकता है जो महावीर के साथ या बुद्ध के साथ घटित हुआ। हिन्दू धर्म भी मानता है की राज योग, कर्म योग, ज्ञान योग और भक्ति योग से घटने वाली घटना उपवास से घट सकती है।




उपवास का महत्व  हर धर्म मे है। यही बहोत बड़ी बात है की सब धर्मो का एक इस विषय पर मानना एकदम समान है। हिन्दू धर्म मे सावन मास हो, या जैन धर्मसंप्रदाय मे पर्युषन या फिर बात हो मुस्लिम धर्मसंप्रदाय मे रमदान या रमजान की। सब धर्म उपवास को मानते है। इससे होने वाले फायदे को भी मानते है। इंडो इराइनियन भाषा मे “ड़ारी” शब्द से रोजा शब्द उतरा है। तुर्की भाषा मे उसे ओरुक कहेते है तो मलेशिया, ब्रुन तथा सिंगापूर मे पौसा कहेते है उसे ही संस्कृत मे उपवास कहेते है।
हिन्दू धर्म मे तैतरीय उपनिषद मे भी उपवास के महत्व को समजाया गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी उपवास के बारे मे वर्णन है। देवराज इंद्र ने भी उपवास कर के कुछ सिद्धिया हांसील की थी। शिव पुराण के अनुसार राक्षसराज रावणने भी देवाधिदेव महादेव शिव को प्रसन्न करने के लिए उपवास का सहारा लीया था। महाभारत के अनुशाशन पर्व मे तो किस दिन और कैसे उपवास करने से क्या लाभ प्राप्त होता है इसके बारे मे काफी कुछ वर्णन मिलता है। दानव गुरु शुक्राचार्य ने तपस्या करके उपवास का रहस्य जाना था। हिन्दू धर्म तो सदा से मानता है की निरोगी जीवन ही उपवास से प्राप्त नहीं होता बल्कि सुख भी मिलता है, संकल्प भी सिद्ध होते है और पाप मे से मुक्ति भी मिलती है। गौतम बुद्ध ने भी धम्मपद मे उपवास के बारे मे काफी कुछ बताया है।
1 यज्ञ
2 दान
3 तप
4 उपवास

मुस्लिम लोगो मे रमजान महिनेमे रोजा के दौरान ईश्वर भक्ति को देखा जा सकता है। मुस्लिमो को रोजा के दौरान ४२ नियमो का पालन करना पड़ता है तब और केवल तब ही रोजा फलित होता है उपवास फलित होता है यह कहा जाता है।



विज्ञान ने भी उपवास के बारे मे काफी संशोधन किए है।

क्रमशः...


उपवास के संदर्भ्मे आगे...

पिछले अंक मे उपवास के धार्मिक महत्व को हमने जाना। और कुछ महत्वपूर्ण जानकारिया ले ली जाए तो आगे इस उपवास को भली भाति समज पाएंगे। उपवास के बारे मे हमने जाना की हिन्दू धर्म मे तैतरीय उपनिषद, महाभारत, शिवपुराण और वेदो मे भी उपवास के महत्व को समजाया गया है। वैसे ही बोधिझम के धम्मपद मे भी उपवास के महत्व जो जताया गया है। वैसे ही महावीर ने भी उपवास के विषय कुछ बाकी नहीं छोड़ा। और मुस्लिमभाईओ के रोजा के बारे मे यहा कौन नहीं जानता। इसके अलावा बहाईधर्मने(फूटनोट १) भी उपवास के महत्व को जाना है। ईसाई धर्म ने भी डेनियल फास्ट को एक स्पिरितुयल फास्ट यानिकी एक आध्यात्मिक उपवास कहा है। रोमन केथोलिक चर्च जिसके साथ १.२७ बिलियन अनुयायी जुड़े है वह भी तो उपवास की अहमियत को समाजने मे बिलकुल पीछे नहीं। कई ऐसे दिन तय किए गए है जिस दिन उपवास करना है और मांसाहार का भोग नहीं करना है। वैष्णव समाज मे चातुर्मास का और एकादशी के उपवास के महत्व को बताया जाता है। आत्मविकास की यात्रा मे और प्रभु-भक्ति मे लिन भाविकों के लिए इस समय के उपवास का अनन्य महत्व बताया गया है। यहूदी धर्म मे भी उपवास की बात बहोत खास है।


हर धर्म एक बात सहमति के साथ मानता है की, उपवास सिर्फ अनशन नहीं है। सिर्फ खाने या पीने से परहेज करना उपवास नहीं। उपवास यानि अपने से थोड़ा ऊपर उठ के, स्थूलता से थोड़ा ऊपर उठ के, भावनाओ से थोड़ा ऊपर उठके, जो ज्ञान तुमने इकठ्ठा किया है उससे बने अहंकार और उस ज्ञान से ऊपर उठ के बेठों। यानि खुद के अस्तित्व को भी कुछ समय दो। अगर दे सके तो अनशन तो अपने आप खुद ब खुद घटित हो ही जाएगा क्योकि कुछ याद ही नहीं आएगा। न खाने को भूख, न पीने की प्यास। मेरा मानना है की मेडिटेशन की सारी पद्धतिओ मे एक अजोड़ पद्धति उपवास है। और यही एक ऐसी पद्धति है जिसे आप दूसरी किसी भी पद्धति के आचरण के साथ उपर्युक्त कर सकते हो और फायदा ही फायदा होगा। उपवास ध्यान की एक अद्भुत पद्धति है। इसीलिए उपवास के दौरान हर धर्म ने बनाए नियम भी काफी साम्यताए रखते हे। एक जैसे ही मालूम होते है। जैसे की...

प्रभु भजन मे लिन रहे - यही प्रकृति के अद्भुत सौन्दर्य के बारे मे सोचे और प्रकृति को सराहे,
सारी मलिन एवं नकारात्मक विचार-धाराओको त्याग दे...
उपवास के दौरान रोज धार्मिक जगह जाए जैसे की मंदिर मस्जिद बगैरह...
ब्रह्मचर्य का पालन करे...
मांस मदिरा न ले...
ईर्ष्या एवं द्वेष और खराब भावनाए झहन मे न लाये...
लहसुन, प्यास तथा अन्य तामसी खुराक न खाये...
दाढ़ी, नाखून या बाल बगैरह न काटे...
बुराई से दूर रहे...
स्त्री या पुरुष को वासनापूर्ण भावना से न देखे...
लड़ाई-जगड़ो से एवं बेबुनियादी दलीलों से दूर रहे...
नेक कर्म करे – अच्छे कर्म करे...
जूठ मत बोले...
नशा न करे...


इसका वैज्ञानिक महत्व भी कोई कम नहीं आँका जा रहा है। विज्ञान हमेशा संदेह और नयी आशा की दृष्टि से देखता है। प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान मे उपवास का विज्ञान एक खास महत्व रखे हुए है। आयुर्वेद की दृष्टि से बात करे तो उपवास के विषयमे कहा गया है की लंघनम परमं औषधम। ढेरो शोध हो चुकी है और होती रहनी हे। उन ही मे से कुछ घटनाओ एवं शोध पात्रो को आपके सामने रखना चाहता हु।

चरक संहिता मे भी उपवास का अनन्य महिमा हे और फिर आयुर्वेद मे महर्षि वाग्भट्टजी ने कहा है की -
“लंघनै: क्षपिते दोषे दीपते..नि लाघवे सति। स्वास्थ्यं क्षुतृडरूचि: पक्तिर्बलमोजश्च जायते॥”

अर्थ:- उपवास से प्रकोपित दोष नष्ट हो जाते है। जठराग्नि प्रदीप होती है। शरीर हल्का हो जाता है। भूख और प्या:स उत्पन्न होते हे। आहार का सम्यक पाचन होता है। स्वास्थ्य, ओज और बलमे वृद्धि होती है। (वाग्भट्ट, ची.1.23)

एक लोकोक्तिभी तो काफी प्रचलित हे -
“अर्धरोगहारी निंद्रा। सर्वरोगहारी क्षुधा॥”

अर्थ:– सही तरीके की नींद अगर प्राप्त हो तो आधा रोग ठीक हो जाता है। और अगर उपवास को जोड़ लिया जाये तो उससे पूरा रोग ठीक हो जाता है।
चीनी और यूनानी मेडिकल साइन्स के मुताबिक भी उपवास हमे कई नित-नवीन प्रकार के रोगो से रक्षता हे। उपवास मियादी बुखार, आमाशय का घाव, तथा पेट के अन्य रोगो के उपचार मे काम करता है।


लेकिन मनुष्य ठहरा बुद्धिशाली(?) प्राणी, उसने तो आज उपवास की व्याख्या ही बदल के रख दी। नमक के स्थान पर सैंधालुण, गेहु एवं बाजरे के स्थान पर सिंघाड़े का आटा, मूंग या अरहर एवं चावल के स्थान ले रही साबूदाना की खिचड़ी। पापड़ के स्थान आलू की चिप्स। अलग अलग सब्जी के स्थान पर आलू भाजी (और हा वह भी नयी नयी पद्धतियो के साथ जैसे की ड्रायफ़ृइट्स और नित नवीन मसालो से भरपूर)। पेट भरकर खाकर किया जानेवाला उपवास तो अनशन की व्याख्या को भी प्रतिपादित नहीं करता तो कोई शारीरिक स्वास्थ्य बाक्षणा तो दूर रहा उपवास के शास्त्रीय माहात्मय से तो १८० के कोण से विपरीत हे।

कुछ निम्नलिखित बाते एवं कहावते आजकल लोगो मे प्रचलित हुई हे, जैसे की –

“भूखे तो भिखारी भी होते हे” या “हम क्यू होते हुए भी भूखे मरे?” या “अगर न खाने से ही कोई पुण्य प्राप्त होता तो दुनिया के लाखो लोग श्रद्धा के रहते मृत्यु पर्यंत उपवास करते हे फिर भी उनके भाग्य निर्मित दुःखोसे मुक्त क्यो नहीं होते?”
“इस देश मे तो हररोज लाखो लोग भूखे सो जाते हे तो क्या उन्हे कोई पुण्य अर्जित होता हे?

उपर की सारी बातो का अगर बहोत ही छोटा उत्तर देना चाहे तो होगा की “ना”। पुण्य अर्जन या रोग मुक्ति या उपवास का कोई भी फायदा तो तभी हो सकता हे जब उसे सोचे-समझे और नियमित आहार लेने के साथ मे सही तरीके से उपवास को साधन बनाया जाये। क्यूंकी भूखे रहना तो अनशन होगा और भूखे व्यक्ति का ध्यान कभी भी शरीर से ऊपर तो उठ ही नहीं सकता क्यूंकी जिसको अभी शरीर बोध ही कम नहीं हो रहा वह ऊपर उठकर तो सोच ही नहीं सकेगा। और उपवास का शब्दशः अर्थ हे की “ऊपर उठ कर वास करना”।

  1. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान आफ्रिका के सहारा के मरुस्थलमे फंसे हुए मित्र राष्ट्रकी सेना के सैनिको को पूरी मात्रा मे खाना नहीं मिल पा रहा था उसी दौरान करीब तीन दिन तक अन्नजल से नजरे नहीं मिला पाये थे। उस मरुस्थल को पार करते हुए ७०० सैनिकोमे से केवल २१० ही भाग्यशाली थे जो बचे। बाकी के मित्र भूख एवं प्यास सहन न होने के कारण मृत्यु के शरणागत हुए। 

    आप सभी को यह जानकर आश्चर्य होगा की इस जिंदा बचे सैनिकोमेसे करीब ८०% यानि की करीब १८६ सैनिक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे। जब इस विस्मयकारक घटना का विश्लेषण किया गया तब विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे की – “वह निश्चित ही कुछ ऐसे पूर्वजोकी संतान थी जिन व्यक्तिओ के रक्त मे तप, तितिक्षा, उपवास, सहिष्णुता, एवं संयम का अनूठा प्रभाव रहा होगा। जो अपने जीवन मे श्रद्धापूर्ण बनकर कठिन व्रतो का पालन करते रहे होगे।


शायद ही आपने यह जाना होगा की कभी कुछ दिन तक पशु एवं पक्षी भी कुछ भी नहीं खाते या पीते हे। अगर शरीर के प्राकृतिक चक्र पर ध्यान दे और गौर करे तो पाएंगे की ४० से ४८ दिन के एक खास चक्रसे गुजरता हे। ११ से १४ दिन मे एक दिन ऐसा होगा जब आपको कुछ भी खाने को मन नहीं करेगा। फिर भी आप यंत्रवत खाएगे यह बात अलग हे। हर ४० से ४८ दिन के इस प्राकृतिक चक्र मे करीब ३ दिन ऐसे हॉट हे जब आपके शरीर को अन्न की जरूरत नहीं होती हे, शायद इसी को ध्यान मे रखकर हर १४ दिन के बाद ११ (एकादशी) के उपवास का माहात्मय का गान किया गया हो। तब तो काफी उच्च कोटी के रहे होगे वह ऋषिमुनी जिन्हों ने इस बात को समझा होगा।

फूटनोट १. बहाईधर्म उन्नीसवी सदी मे ईरान मे सन १८४४ मे स्थापित किया गया एक नया धर्म है जो एकेश्वर वाद और विश्वभर मे प्रवर्तमान विभिन्न धर्मसंप्रदाय और पंथ की एकमात्र आधारशिला पर ज़ोर देता है। इसकी स्थापना बहौल्लाह ने की थी। इस धर्म के अनुयायी बहौल्लाह को पूर्व के अवतार कृष्ण तथा बुद्ध, पश्चिम के ईसा मसीह, अरब के मुहम्मद, जरथुष्ट्र, मूसा आदि के पुनर्जन्म मानते है। बहौल्लाह को कल्कि अवतार के रूप मे माना जाता है। जो सम्पूर्ण विश्व को एक करने हेतु पुनः अवतरित हुए है। जिनका उद्देश और संदेश यह है की “समस्त विश्व एक देश है, और समग्र मानवजाति इसकी नागरिक”। इनहोने भी २ मार्चसे २० मार्च तक १८ दिन के उपवास के महत्व को समजाया है

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