"यह आकाश, पृथ्वी, पानी, हवा, ग्रह, तारे एवं हम यह सब आये कहा से है ?"
"घूम क्यों रहे है ?"
"संतुलित क्यों है ? कैसे हे ?"
"हम क्यों है ?"
" इत्तेफ़ाक़ है या किसी कारन से है ? या फिर किसी सुव्यवस्था का हिस्सा ? कौन है जो इस सृष्टि को रंग, रूप और आकार दे रहा है ?"
हमारी बुद्धि ही है जो हमें ज्यादा और ज्यादा तर्क और तथ्यों के समुद्र में डुबो चली है।
इंसान क्या कर लेगा..... कुछ भी कर ले दूसरी दुनिया तो नहीं ही बना लेगा , और चलो बना भी लिया तो फिर क्या ? फिर क्या प्राप्त हो जायेगा दुनिया बना के ।
"घूम क्यों रहे है ?"
"संतुलित क्यों है ? कैसे हे ?"
"हम क्यों है ?"
" इत्तेफ़ाक़ है या किसी कारन से है ? या फिर किसी सुव्यवस्था का हिस्सा ? कौन है जो इस सृष्टि को रंग, रूप और आकार दे रहा है ?"
हमारी बुद्धि ही है जो हमें ज्यादा और ज्यादा तर्क और तथ्यों के समुद्र में डुबो चली है।
इंसान क्या कर लेगा..... कुछ भी कर ले दूसरी दुनिया तो नहीं ही बना लेगा , और चलो बना भी लिया तो फिर क्या ? फिर क्या प्राप्त हो जायेगा दुनिया बना के ।